#_देवदासी_प्रथा_-लड़कियों को धर्म के नाम पर मंदिरों को दान कर दिया जाता है-इस दौरान उनका शारीरिक शोषण किया जाता है
देवदासी प्रथा यूं तो भारत में हजारों साल पुरानी है पर वक्त के साथ इसका मूल रूप बदलता गया। कानूनी तौर पर रोक के बावजूद कई इलाकों में इसके जारी रहने की खबरें आती रहती हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है।
आखिर क्या है ये प्रथा
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- कहा जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी।
- इस प्रथा के तहत कुंआरी लड़कियों को धर्म के नाम पर कुछ मंदिरों को दान कर दिया जाता था।
- माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे।
- परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था।
- देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है।
- उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। कहते हैं कि इस दौरान उनका शारीरिक शोषण किया जाता था।
- मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है।
- मशहूर बॉलीवुड सिंगर एम. एस सुब्बू लक्ष्मी भी देवदासी कम्युनिटी से थी।
- उनकी मां वीणा वादक थीं वहीं दादी वायनलिस्ट थीं।
- वुमंस डे के मौके पर आपको बता रहे है देवदासी प्रथा के बारे में जो आज भी भारत के कई इलाकों में चली आ रही है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है।
कालिदास ने मेघदूतम में किया है जिक्र
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देवदासी यानी ‘सर्वेंट ऑफ़ गॉड’। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंआरी कन्याओं का वर्णन है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है।
लिखी जा चुकी हैं कई किताबें
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देवादासियों के बारे में देश-विदेश के इतिहासकारों ने कई किताबें लिखी हैं। एनके. बसु की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया’, एफए मार्गलीन की किताब ‘वाइव्ज ऑफ द किंग गॉड, रिचुअल्स ऑफ देवदासी’, मोतीचंद्रा की ‘स्टडीज इन द कल्ट ऑफ मदर गॉडेस इन एंशियंट इंडिया’, बीडी सात्सोकर की ‘हिस्ट्री ऑफ देवदासी सिस्टम’ में इस प्रथा के बारे में विस्तार से बताया गया है। जेम्स जे फ्रेजर की किताब ‘द गोल्डन बो’ में भी इस प्रथा के बारे में विस्तार से लिखा गया है।
देवदासी प्रथा यूं तो भारत में हजारों साल पुरानी है पर वक्त के साथ इसका मूल रूप बदलता गया। कानूनी तौर पर रोक के बावजूद कई इलाकों में इसके जारी रहने की खबरें आती रहती हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है।
आखिर क्या है ये प्रथा
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- कहा जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी।
- इस प्रथा के तहत कुंआरी लड़कियों को धर्म के नाम पर कुछ मंदिरों को दान कर दिया जाता था।
- माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे।
- परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था।
- देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है।
- उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। कहते हैं कि इस दौरान उनका शारीरिक शोषण किया जाता था।
- मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है।
- मशहूर बॉलीवुड सिंगर एम. एस सुब्बू लक्ष्मी भी देवदासी कम्युनिटी से थी।
- उनकी मां वीणा वादक थीं वहीं दादी वायनलिस्ट थीं।
- वुमंस डे के मौके पर आपको बता रहे है देवदासी प्रथा के बारे में जो आज भी भारत के कई इलाकों में चली आ रही है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है।
कालिदास ने मेघदूतम में किया है जिक्र
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देवदासी यानी ‘सर्वेंट ऑफ़ गॉड’। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंआरी कन्याओं का वर्णन है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है।
लिखी जा चुकी हैं कई किताबें
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देवादासियों के बारे में देश-विदेश के इतिहासकारों ने कई किताबें लिखी हैं। एनके. बसु की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया’, एफए मार्गलीन की किताब ‘वाइव्ज ऑफ द किंग गॉड, रिचुअल्स ऑफ देवदासी’, मोतीचंद्रा की ‘स्टडीज इन द कल्ट ऑफ मदर गॉडेस इन एंशियंट इंडिया’, बीडी सात्सोकर की ‘हिस्ट्री ऑफ देवदासी सिस्टम’ में इस प्रथा के बारे में विस्तार से बताया गया है। जेम्स जे फ्रेजर की किताब ‘द गोल्डन बो’ में भी इस प्रथा के बारे में विस्तार से लिखा गया है।
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