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सोमवार, 21 मार्च 2016

महाड सत्याग्रह के बारे मे जानो

महाड सत्याग्रह: 20 मार्च को बाबा साहब ने दलितों को दिलाया था पानी पीने का हक
नई दिल्ली. आज का दिन बहुजन समाज के लिए अति महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड स्थान पर डॉ बी.आर. आंबेडकर ने दलितों को सार्वजनिक तालाबों से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाया था। तब से इस दिन को भारत में सामजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में देखा जाता है।
हिन्दू जाति प्रथा में दलितों (जिन लोगो को दबाया गया हो समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से) को समाज से पृथक करके रखा जाता था। उन लोगों को सार्वजनिक नदी, तालाब और सड़कें इस्तेमाल करने की मनाही थी। अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव कौंसिल के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, कि वो सभी जगह जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, ऐसी जगहों का इस्तमाल हर कोई कर सकता है। जनवरी 1924 में, महाड जोकि बॉम्बे कार्यक्षेत्र का हिस्सा था। उस अधिनियम को नगर निगम परिषद के द्वारा लागु किया गया। लेकिन हिन्दुओं के विरोध के कारण इसे अमल में नहीं लाया जा सका।
1927 में बाबा साहेब ने एक सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। उसकी बहिष्कृत हितकार्नि सभा ने एक सम्मेलन का बंदोबस्त 19-20 मार्च को किया। जिसमें दस हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। उस सम्मेलन में उच्च-नीच, भेद-भाव को जड़ से उखाड़ने के महत्व को समझाया गया। अपने आपको बुलंद करने के लिए स्वावलम्बन, आत्म-रक्षा और आत्म-ज्ञान की शिक्षा दी गई। सम्मेलन के अंत में सभी ने चवदार तालाब (मीठे पानी का तालाब) की और अहिंसापुर्वक मार्च किया। जोकि उस शहर का प्रमुख तालाब था। और सभी ने उस तालाब से पानी पिया। और फिर वापस चले गए। बाद में किसी ने अफवाह फैला दी की आंबेडकर अपने अनुयायियों के साथ हिन्दू मंदिर में प्रवेश करने वाला है। हिन्दुओं ने दलितों के बस्ती आकर दंगा किया और लोगों को लाठियों से पीटा। बच्चे-बुड्ढे-औरतो सभी को पीटा। घरों में तोड़फोड़ की गई।
हिन्दुओं ने इल्ज़ाम लगाया कि अछूतों ने तालाब से पानी पीकर तालाब को भी अछूत कर दिया। ब्राह्मणों के अनुसार पूजा-पाठ से तालाब को फिर से शुद्ध किया गया। बाबा साहेब ने फिर से दूसरा सम्मेलन, महाड में 26-27 दिसम्बर 1927 को करने का निर्णय लिया। लेकिन हिन्दुओं ने यह कह कर केस कर दिया कि वो तालाब गैर-सरकारी सम्पत्ति है। जिसकी वजह से यह सत्याग्रह दुबारा नहीं हो पाया।
दिसम्बर 1937, में बॉम्बे उच्च न्यायलय ने इंसानियत के पक्ष में फैसला लिया। और सभी को उस तालाब का पानी इस्तमाल करने की इज़ाज़त दी। इस सत्याग्रह से लोगों के मन में आत्म निर्भरता आई। लोगों में समाज में हो रहे उच्च-नीच, भेद-भाव के खिलाफ लड़ने का हौसला जागा। इसलिए 20 मार्च को भारत में सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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