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शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

गाथा वीर मेघमाया की

वीर मेघमाया का इतिहास -ले. दलपत श्रीमाली 

 संदर्भ - महानायक इतिहास दलित संतो का आन्दोलन -- ले. दलपत श्रीमाली


गुजरात मे सिद्धराज सोलंकी नामक राजा अनहिलपुर पाटण राजधानी मे शाशक था... सिद्धराज के समय हमारे

लोगो की स्थिति बडी दुखदायी व पशुमय थी.. गले मे हांडी, पिछवाडे झाडू बांधकर चलना पडता था...

अश्पृश्यता का कहर छाया हुआ था... गांव के बाहर सीम मे रहने मजबूर अछूतो को तब सीमाडिया कहा जाता था....

अैसे अेक सीमाडिया की वसाहत धोलका के नजदीक रनोडा गांव की सीम मे थी....

यह वसाहत मे मेघमाया नामक अेक अछूत सीमाडिया भी रहता था... वह बडा समजदार व क्रान्तिकारी

विचारवाले थे .... रोज रात को अपने लोगो को भजन, किर्तन करते समय जागृति की बाते समजाते थे ..

.यह बातो से लोगो मे गुलामी प्रति अहेसास हो रहा था....

अेक दिन देर रात को रनोडा की यह वसाहत मे लोगो को ईकठ्ठा करके मेघमाया सामाजिक जनजागरण की बाते

समजा रहे थे.. ( दिन को तो यह मुमकिन नही था, मजदूरी व सवर्णो का डर रहता था) जब देर रात यह बाते

समजा रहा था तब पाटण के राजगोर त्रिभोनन पंड्या वहा से गुजर रहा था... रात के सन्नाटे मे त्रिभोवन पंड्या

ने सिमाडीयो की बाते सूनी... वो आगबबूला हो गया... किन्तु ब्राह्मण कभी गुस्सा जाहिर नही करता....

वह कुछ देर बाते सूनकर त्रिभावन पंड्या पाटण की ओर चला गया....

ईस बात का लम्बा समय बित गया... ईघर गुजरात के राजा सिद्धराज ने पाटण मे तालाब खूदाने का काम

शरू करवाया... तालाब की खूदाई के लिऐ ओड जाति को काम दीया गया.... तालाब का काम कर रहे

ओडजाति के लोग के बीच जशमा नामकी बडी खूबसूरत ओड महिला भी काम कर रही थी... अेक दिन

तालाब के काम का निरीक्षण करने आये सिद्धराज ने जशमा को देखा.... जशमा का सुंदर रूप देखकर

सिद्धराज मोहांध हो गया.... उसने जशमा को वश करने डर, लालच का उपयोग किया किन्तु चारित्र्य

की वफादार जशमा सिद्धराज के वश नही हुई... तब सिद्धराज ने जबरदस्ती से जशमा को पाने की ठानी....

यह पता लगते ही जशमा रात को ही पाटण से भाग निकली.... सिद्धराज को पता चला तो जशमा के

पीछे सिपाही दौडाये.... और वह खूद उनके पीछे लगा..... जशमा को पता चला की पीछे सिद्धराज व उनके

सिपाही आ रहे है... तो अपना शील बचाने वढवाण की सीम मे चिता खडकर अपनी जान दे दी.....

दंतकथाओ व बारोटो की कहानीयो मे कहा जाता है कि जशमाने सती होने से सिद्धराज को श्राप

दीया था कि तेरे सहस्त्रलिंग तालाब मे पानी नही आयेगा...

विज्ञान व तर्क से श्राप देने से पानी नही आता यह बात सही नही है.... लेकिन तथ्य तो यह है कि तालाब

का निर्माण करने का कारण बार बार पडनेवाला सुखा ( दुष्काल) था... दुष्काल की वजह से धरती से पानी

नही निकलता क्यो कि पानी सतह से सुख जाता है.... ईसलिऐ तालाब मे पानी नही आया....

किन्तु ब्राह्मणी कथाकारो व बारोटो ने पानी नही आने का कारण जशमा का श्राप बताया है......


पानी तालाब मे नही आने से सिद्धराज की चिन्ता बढ रही थी.... उसका समाधान पाने उसने पंडितो को

बूलाया... पंडितो की यह सभा मे त्रिभोवन पंड्या भी मौजूद था.... सभी पंडितो ने अपने अपने सुझाव दीये....

जब चर्चा हो रही थी तब सभा मे बैठा त्रिभोवन पंड्या के दिमाग मे भयानक षडयंत्र करने का विचार चल रहा था..

त्रिभोवन पंड्या के दिमाग मे रनोडा का सिमाडिया मेघमाया ही बस चूका था.... मेघमाया के विचारो की क्रान्ति

से त्रिभोवन पंड्या डर गया था.... सिद्धराज की न्यायप्रियता के कारण वो खूद माया को मार नही शक्ता था...

किन्तु माया को खत्म करना त्रिभोवन पंड्या के लिऐ जरूरी था... और यही विचार के कारण त्रिभोवन पंड्या

ने खतरनाक षडयंत्र को अमल कराने का प्लान बनाया.... जब सभी पंडित बारी बारी चले गये तब त्रिभोवन

पंड्या राजा सिद्धराज के पास गया और बोला... महाराज तालाब का पानी लाने का हल मै जानता हूं....

तब सिद्धराज ने कहा पंडितजी बताओ तालाब मे पानी कैसे आयेगा ??? तब त्रिभोवन पंड्या ने मौका

पाते ही कहा महाराज तालाब मे पानी लाना हो तो हमे तालाब मे बत्रीस लक्षणा पुरूष का बलि देना पडेगा.....

( नोँध- उस समय ब्राह्मण के कथन को ही परम सत्य व ब्रह्मवाक्य माना जाता था.... कितना भी शक्तिशाली

राजा क्यो न हो... उसे ब्राह्मण की बात व आदेश मानना पडता था...)

बत्रीस लक्षणा पुरूष की बलि देने बात सुनते ही सिद्धराज ने बिना सोचेसमजे ही कहा कि राज्य मे बत्रीस लक्षणा

पुरूष कौन होगा जो बलि देने के लिऐ तैयार होगा ????

जब बात को लाईन पर आते ही त्रिभोवन पंड्या ने मौका देखकर कहा महाराज बत्रिस लक्षणा पुरूष राज्य मे

दो लोग है... अेक आप और दूसरा रनोडा का सीमाडिया माया (वीर मेघमाया).....

सीमाडिया की बात सूनकर सिद्धराज भी चकित रह गया... बोला क्या अछूत भी बत्रिस लक्षणा हो शक्ता है ???

और ईसके खून से तो तालाब अपवित्र हो जायेगा..... ईसलिऐ अछूत की बलि नही ली जायेगी.... मै खूद अपनी

बली दूंगा... यह सिद्धराज ने कहते ही त्रिभोवन पंड्या का षडयंत्र निष्फल होने का खतरा खडा हो गया....

किन्तु ब्राह्मण था.... षडयंत्र को अंजाम देना जानता था.... ईसलिऐ बिना विचलित हुई त्रिभोवन पंड्या बोला....

महाराज आपके बलिदान से तो प्रजा निराधार हो जायेगी... आप प्रजापालक हो... आपका रहना प्रजा व राज्य के

लिए जरूरी है... आप अपनी बलि नही दे शक्ते.... और हमारे शास्त्रो मे लिखे मुताबित अछूत तो हमारी सेवा व

बलि देने के लिऐ ही जन्मे है.... ईससे तालाब का पानी व तालाब अपवित्र नही होगा... क्यो कि बाद मे हम हम

विधि करवाकर पवित्र कर देगे... यह बात समजाई तो सिद्धराज मान गया और सैनिको को हुकम किया कि

मेघमाया सीमाडिया को हाजर करो.... त्रिभोवन पंड्या का षडयंत्र मेघमाया की हत्या करने का था वह सफल

होने जा रहा था तो मंदमंद मुस्कुरा रहा था....

जब सिपाही रनोडा आये और राजा का आदेश माया को सूनाया तो पूरी वसाहत मे हडकंप मच गया... लेकिन

अछूत कर भी क्या शकते थे. ??? सिपाहीओ के साथ मेघमाया पाटण कि ओर निकल पडा.... रास्ते मे चलते

चलते वह क्रान्तिकारी अपने अछूत समाज का उध्धार करने की बात सोचकर राजा से कुछ मांग लिया जाय

यह तय कर लिया.... जब वो सिद्धराज के दरबार कौने मे खडा रहा तब उसे बताया गया कि सहस्त्रलिंग तालाब

मे श्राप की वजह से पानी नही आया है तो श्राप के निवारण के लिऐ तुम्हारी बलि देनी है.... यह सूनते ही मेघमाया

के पैरो से धरती खिसक गई ....लेकिन वह संभल गया.... क्रान्तिकारी मरते वक्त भी अपना स्वभाव नही छोडते...

उसे पता था कि ईन्कार करने की कोई अहमियत नही है... ईन्कार कीया तो वह जबरन मार डालेगे क्यो कि तब

अछूतो की ईच्छा पूछी नही जाती थी.... वो बोले महाराज मै तालाब के पानी के लिऐ मेरा बलि देने को तैयार हूं...

लेकिन मुजे कुछ सरपाव चाहिए....ब्राह्मणवाद के गुलाम होते भी न्याय के लिऐ जाना जाता ( हांलाकी तब

न्याय भी मनुस्मृति के कानून से ही होता था) सिद्धराज ने माया की सरपाव देने की मांग का स्विकार किया

और कहा... मांगो जो तुम मांगना चाहते हो वह मै दूंगा.... मौका मिलते ही हमारे ईस क्रान्तिकारी मेघमाया ने

कुछ मांगे अपने लिऐ नही किन्तु समाज के लिऐ मांगी

1 . मेरे अछूत समाज को पूरे राज्य मे सीम की जगह गांव मे बसाया जाय... उनके रहने के लिऐ वसाहत बनवाई

जाय

2. गले मे हांडी जो थूंकने के लिऐ लटकानी पडती थी वह निकाली जाय....

3. पिछवाडे बांधा जानेवाला झाडू निकल दीया जाय

4 . पहचान के लिऐ शर्ट की तीसरी बांय हटा दी जाय...

और उनका पूरे राज्य मे सख्ताई से पालन करवाया जाय

कहा जाता है कि मेघमाया ने शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार व शस्त्र धारण करने का भी अधिकार

ईसी मांग मे मांगा था किन्तु मनुस्मृति के विधानो के चलते ब्राह्मणो के दबाव के चलते यह तीन बात नही मानी

थी....

लेकिन जो मांग सिद्धराज ने मान ली उससे हमारे समाज को गांव मे रहने का अधिकार मिला....

गले मे हांडी, पिछवाडे झाडू व तीसरी बांय निकलते ही अछूतो को कुछ हद तक अश्पृश्यता से राहत मिली

और अछूतो मे तब से ईन्सान होने का अहेसास होने लगा.... और अछूतो की प्रगति का यह माईलस्टोन

बनकर आज उभर रहा है....

यह क्रान्तिकारी का बाद मे तालाब मे वध कर दीया गया.... पानी आया न आया यह तो बात की बात है

लेकिन पांच साल तक सूखा पडने से तालाब मे पानी नही आया था किन्तु मेघमाया के बलिदान से दूसरे

साल भारी बारीस हुई होगी तो तालाब पानी से भर गया होगा...

जो भी हो.....

सत्य तो यह है कि सामाजिक जनजागरण करते करते मेघमाया कट्टर ब्राह्मण त्रिभोवन पंड्या की नजरो

मे चड गया और त्रिभोवन पंड्या के षडयंत्र से उन महापुरूष की हत्या कर दी गई..... मतलब हरहंमेश की

तरहा हमारा क्रान्तिकारी महापुरूष ब्राह्मणवाद की भेंट चड गया....

मरकर भी ईस महापुरूष ने अछूत समाज का उध्धार किया और ईतिहास मे अमर हो गया.... बाद मे सदीयो

बाद ज्योतिराव फूले, शाहूजी, पेरियार, बाबासाहब के सामाजिक आन्दोलन की वजह से अैसे गुमनाम महान

क्रान्तिकारी महापुरूषो के ईतिहास की खोजबिन कि गई और सही ईतिहास हम जान पाये....

साथीयो. ....

आज भी हजारो महापुरूषो का सही ईतिहास ब्राह्मणो ने दबाकर खत्म करके कल्पित कहानिया हमारे सिर

पर मढ दी है हमे सामाजिक आन्दोलन के कार्यकर होने की फर्ज निभाकर ईतिहास को उजागर करने का काम

करके समाज को सच्चाई बताने का काम करना हैthanks

हीरा बोस (editer)

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहूत ही अच्छी तरह से आपने हमारे मूलनिवासी इतिहास और क्रांतिकारी नायको का इतिहास समजाया है।
    जय भीम नमो बुद्धाय

    जवाब देंहटाएं
  2. Me bhi vankar ka beta hu to hamareliye shaheed vir meghmaya ji bhagwan se bhi badhkar he kyunki jo kam bhagwan ka kar sake to bhagwan ese mahapurusho ko hamare udhhar ke liye bhejte he to jay vir meghmaya jay bhim namo budhhaye

    जवाब देंहटाएं

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BABA SAHEB DR BHIMRAO AMBEDAKAR