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सोमवार, 11 जुलाई 2016

एक थी डेल्टा - PART 1 , BHANWAR MEGHWANSHI

एक थी डेल्टा -1
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भारत पाकिस्तान की सीमा पर बसे गाँव त्रिमोही की बेटी डेल्टा ,जो इस रेगिस्तानी गाँव की पहली बेटी थी जिसने बारहवीं पास करके रीति रिवाजों में जकड़े समाज की सीमा का उल्लघंन किया था ,उच्च शिक्षा के लिए बाहर गयी .उसके मन में कईं सपने थे ,जिन्हें वो साकार करना चाहती थी ,उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती थी वो ,अपने मेहनकश माता ,पिता और दलित समुदाय का आदर्श सितारा बनना चाहती थी वो ,मगर अफ़सोस यह है की महज 17 वर्ष की डेल्टा इस व्यवस्था की क्रूरता की निर्मम शिकार हो गई .जिन लोगों के संरक्षण में डेल्टा को सुरक्षित मानकर छोड़ा गया था .वे रक्षक ही हत्यारे और बलात्कारी बन बैठे और 29 मार्च 2016 को उसकी बलात्कार के बाद जघन्य हत्या कर दी गई .
एक होनहार बेटी की मौत से दलित ,बहुजन, मूलनिवासी समाज थोड़ी देर के लिए जागा ,धरने भी प्रदर्शन किये . नतीजतन जनाक्रोश से डर कर राजस्थान की घोर सामंतवादी सरकार ने सीबीआई जाँच का नाटक किया ,मगर डेल्टा की मौत के तीन माह गुजर जाने के बावजूद आज तक सीबीआई जाँच होना तो दूर की बात है ,ऐसी किसी जाँच के लिए केंद्र सरकार की ओर से नोटिफिकेशन तक जारी नहीं किया गया है. दलितों की भावनाओं की कितनी कद्र करती है ये समरसता की पैरोकार सरकार ,इसका पता इस बात से चलता है कि इसी राज्य में घोषित गुंडों की मौत की जाँच तुरंत सीबीआई को सौंपी जाती है ,मगर बहुजन समाज की होनहार बेटी की क्रूर हत्या की जाँच राजस्थान की नाकारा पुलिस करती है .
अब तो ऐसा लगता है कि डेल्टा की हत्या को एक तमाशा बना दिया गया है ,समाज की एक प्रतिभाशाली बेटी के शव को कई सरकारी ,गैर सरकारी ,राजनीतिक ,जातीय और प्रशासनिक गिद्द नौंचने में लगे हुए है .रसूखदार आरोपियों को बचाने के लिए स्पष्ट हत्या को आत्महत्या करार दिया गया है .डेल्टा के लिए लड़ रहे वकीलों तक के सुर रातों रात बदल गए है .इस मसले में भी लोग दलाली करने से नहीं चूके ,कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि कुछ लोग सड़कों से सीधे स्कार्पियों में आ गये है ,छुटभैयों को पार्टी में पद मिल गये है और जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी ख़ामोशी ओढ़े रखी ,उन्हें लाल बत्तियां नसीब हुई है .अमानवीयता की पराकाष्ठा तक पंहुच कर लालचियों ने इस पूरे मसले का अपने अपने तरीके से लाभ लेने की निष्ठुर कोशिशें की है .रही बात वृहत्तर समाज की ,तो उसने शुरुआत में हल्की सी जुम्बिश ली और फिर लम्बी चादर तान कर खुद को मुर्दों का समाज साबित कर दिया है .
डेल्टा के न्याय के लिए संघर्ष कर रहे उसके यौद्धा पिता महेंद्रा राम मेघवाल,उनके हिम्मती परिजन और अन्य संघर्षशील साथीगण अब स्वयं को अकेला पा रहे है ,उनका लड़ने का ज़ज्बा आज भी उतना ही है, ना ही उन्होंने उम्मीद छोड़ी है ,पर जिन लोगों से उन्हें सकारात्मक सहयोग की अपेक्षा है वो आज आरोप ,प्रत्यारोप और राजनीतिक नफा नुकसान को मद्देनजर रख कर अपना कदम निर्धारित कर रहे है .इसका फलित यह है कि डेल्टा के पक्ष में देश के कोने कोने तथा विदेशों तक में जस्टिस फॉर डेल्टा के नारों के साथ खड़ी हुई बिरादरी को पता ही नहीं चल पा रहा है कि आखिर डेल्टा के मामले में आगे क्या हुआ है .
ज्यादातर लोग इसी गलतफहमी में है कि सीबीआई जाँच चल रही है .मगर सच्चाई तो कुछ और ही है .इसलिए हमने सोचा है कि डेल्टा की पैदाइश से लेकर उसकी परवरिश तथा पढाई और उसके साथ हुए अन्याय एवं उसको न्याय नहीं मिले इसके लिए किये जा रहे दुश्चक्र की जानकारी परत दर परत सब तक पंहुचाई जाये.
यह सीरिज बहुत सारे साथियों से बातचीत करके लिखी जा रही है फिर भी इसमें कोई तथ्यात्मक त्रुटि परिलक्षित हो तो हमें अवगत करावें . यहाँ डेल्टा के नाम का ज़िक्र उनके परिजनों की सहमति से किया जा रहा है ,वो चाहते है कि उनकी जांबाज़ बेटी के संघर्ष और उसके साथ हुई संस्थानिक क्रूरता के बारे में सब लोग जानें और न्याय की इस जंग में उनके संग खड़े हों .....(जारी )
- भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है तथा दलित मुद्दों पर राजस्थान में सक्रिय है .सम्पर्क सूत्र - bhanwarmeghwanshi@gmail.com , व्हाट्सएप - 9571047777)
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