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बुधवार, 11 मई 2016

दलित क्रांतिकारी वीर महानायक मतादीन भंगी: क्रांति 1857

Matadin Bhangi ( दलित क्रांतिकारी वीर महानायक मतादीन भंगी)

जब हम आजादी का इतिहास पढते हैं तब, सन 1857  का सैनिक विद्रोह याद आता है।  और जब यह विद्रोह याद 
आता है तब, मंगल पांडे अनायास अपने ब्रिटिश सार्जेंट की छाती पर बन्दूक ताने आपके जेहन में कूद पड़ता है। 
मगर,यह तस्वीर का एक पहलू है।

सन 1857 के सैनिक विद्रोह का 
महानायक मातादीन भंगी  
तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इतिहास को लिखने की जिसकी ठेकेदारी थी, चाहे ब्राह्मण हो या ठाकुर; था ऊँची जात। अब यह तो आपने देख ही लिया है कि वशिष्ठ हो या विश्वामित्र; गुरु (द्रोणाचार्य) की कुर्सी रहती उसके पास ही है !

खैर, हम सन 1857  के सैनिक विद्रोह पर आते हैं। इस सैनिक विद्रोह की कथा पढ्ते समय ब्राह्मणोँ की  छाति फूल जाती है। यह विद्रोह हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है। और यह तो आप  जानते ही  हैं कि आस्था के सामने सारा साइंस और तर्क बौने हो जाते हैं।

हिंदुओं की मान्यता है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ है। ब्राह्मण, श्रेष्ठ इसलिए है कि वह गाय का मांस नहीं खाता। गाय का मांस खाने की बात 
दूर, वह उसे मुंह क्या हाथ भी नहीं लगाता ?

ब्रिटिश आर्मी में मंगल पांडे नाम का एक ब्राह्मण था।  ब्राह्मण एक ऐसा जीव है कि सेना  में भर्ती हो कर युद्ध कर सकता है, राशन- 
किराने की दुकान पर बैठ कर पंसारी बन सकता है।   और तो और शहर के बीचों-बीच बाजार में फूट-वियर की दुकान खोलकर  
वह जूते -चप्पल बेच सकता है।  भाई , कानून-कायदे उसने खुद  बनाया है ! वह सब कर सकता है ?

हुआ यह कि एक दिन मंगल पांडे अपने साथी सिपाही के हाथ से पानी का लोटा लेने से इसलिए मना कर देता है कि उसे देने वाला
 भंगी जात का था।   बात बढ़ने पर तैश में वह सिपाही कहता है कि गाय और सुअर की चर्बी से बनी  बन्दूक की गोली का खोका तो
 मुंह से तोड़ते तुम्हारा धर्म भ्रष्ट नहीं होता मगर ,  अपने सह-धर्मी से छुए लोटे का पानी तुम्हें भृष्ट करता है ?  बात कडुवी मगर, सच थी।

गाय और सूअर की चर्बी की सच्चाई जान मंगल पांडे आग बबूला हो अपने प्लाटून कमांडर पर हमला कर देता है। बैरक में अफरा-तफरी 
देख जब सीनियर अधिकारी आगे बढ़ता है तो मंगल पांडे उल्टे उस पर ही बन्दूक तान देता है। भारतीय सैनिक विद्रोह पर उतारू हो 
जाते हैं।  देखते ही देखते यह विद्रोह अन्य कई बैरकों में फ़ैल जाता है।

ब्रिटीश सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों का यह विद्रोह कोई  छोटी-मोटी घटना नहीं थी। मगर,  क्या इस सैनिक विद्रोह का हीरो
 मंगल पांडे था ?  भंगी जाति के उस सिपाही की,  जिसने  मंगल पांडे को अपने सह-धर्मी से पशु जैसा व्यवहार करने को ललकारा 
था, क्या कोई भूमिका नहीं थी ?  दोस्तों ,  वह भंगी जाति का सिपाही और कोई नहीं, दलित क्रांतिकारी वीर महानायक मातादीन भंगी था।
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